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Moral story in hindi सर्वश्रेष्ठ नैतिक शिक्षा की कहानी इन हिंदी में

ऐसी कहानियां जो पढ़ने में आनंदामय होने के साथ-साथ हमें जीवन में महत्वपूर्ण पाठ सिखाती हैं तथा अच्छे और बुरे समय में धैर्य व संयम बनाये रखने की प्रेरणा देती हैं, वे नैतिक कहानी (morle story) कहलाती हैं। इनसे जीवन में महत्वपूर्ण सबक सीखने को मिलता है।

नैतिक कहानियाँ न केवल बच्चों को सही गलत सीखने में मदद करती हैं, बल्कि उन्हें सहानुभूति, बुद्धिमत्ता और महत्वपूर्ण सोच कौशल विकसित करने में भी मदद करती हैं जिसका उपयोग वे अपने जीवन में हर परिस्थिति का सामना करने और उससे निपटने में कर सकते हैं।

Top Moral Based Stories in Hindi for kids मोरल स्टोरी इन हिंदी फॉर किड्स

Hindi story based on moral for kids

प्रेरणादायक छोटी नैतिक कहानी Top Moral Stories – शेर और सियार, सफलता का रहस्य (secret of success), संगति का असर, अक्लमंद हंस (पंचतंत्र) || Short Story with Moral मोटिवेशनल स्टोरी इन हिंदी।

आखिरी काम ! {Inspirational story in hindi with moral}

एक बढ़ई अपने काम के लिए प्रसिद्ध था, उसके द्वारा बनाए गए लकड़ी के घर दूर-दूर तक प्रसिद्ध थे। लेकिन अब बूढ़ा होने के कारण उसने सोचा कि उसका शेष जीवन आराम से व्यतीत हो और वह अगले दिन सुबह-सुबह अपने मालिक के पास पहुंचा और बोला, ” साहब, मैंने आपकी कई वर्षो तक सेवा की है, लेकिन अब मैं अपना बाकी जीवन आराम से पूजा-पाठ में बिताना चाहता हूँ,, कृपया मुझे काम छोड़ने की आज्ञा दें।”

ठेकेदार बढ़ई की बहुत इज़्ज़त करता था इसलिए उसे यह सुनकर थोड़ा दुख हुआ, लेकिन वह बढ़ई को निराश नहीं करना चाहता था, उसने कहा, आप यहाँ सबसे अनुभवी व्यक्ति हैं, आपकी कमी यहाँ कोई पूरी नहीं कर पाएगा इसलिए मैं तुमसे विनती करता हूँ कि जाने से पहले एक आखिरी काम और करो।

“जी, क्या काम करना है?”, कारपेंटर ने पूछा.

“मैं चाहता हूँ कि तुम जाते समय हमारे लिए एक और लकड़ी का घर तैयार करो।”, ठेकेदार ने घर बनाने के लिए आवश्यक धन देते हुए कहा।

बढ़ई इस काम के लिए तैयार हो गया। उसने अगले ही दिन से घर बनाना शुरू कर दिया, लेकिन यह जानकर कि यह उसका आखिरी काम है और उसके बाद उसे और कुछ नहीं करना पड़ेगा, वह थोड़ा ढीला हो गया। पहले जहाँ वह बड़े ध्यान से लकड़ी चुनता और काटता था, वहीं अब वह चतुराई से यह सब करने लगा। कुछ ही हफ़्तों में घर तैयार हो गया और वह ठेकेदार के पास पहुँचा, “ठेकेदार साहब, मैंने घर पूरा कर लिया है, क्या मैं अब काम छोड़ सकता हूँ?”

ठेकेदार ने कहा “हां, तुम जा सकते हो, लेकिन अब तुम्हें अपने पुराने छोटे से घर में जाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इस बार तुमने जो घर बनाया है, वह तुम्हारे वर्षों की मेहनत का प्रतिफल है, अपने परिवार के साथ खुशी-खुशी घर में रहिये !”

बढ़ई यह सुनकर चौंक गया, वह मन ही मन सोचने लगा, “मैंने पूरा जीवन दूसरों के लिए अच्छा घर बनाया और अपना घर इतने घटिया तरीके से बनाया… काश मैंने इस घर को भी सभी घरों की तरह बनाया होता।” “

इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि हमारा काम हमारी पहचान बना भी सकता है और बिगाड़ भी सकता है। इसलिए हमें हर कार्य को अपनी पूरी क्षमता के अनुसार करने का प्रयास करना चाहिए, भले ही वह हमारा अंतिम कार्य क्यों न हो!

अक्लमंद हंस {Best panchtantra based short moral story}

एक बहुत बड़ा विशाल वृक्ष था। उस पर हंसों का एक समूह रहा करता था। उनमें एक बहुत बुद्धिमान हंस था, बुद्धिमान और बहुत दूरदर्शी भी। सभी उसका आदर करते थे और उसे ‘ताऊ’ कहकर बुलाते थे। एक दिन उसने पेड़ के तने पर एक छोटी सी बेल को पेड़ के नीचे लिपटा हुआ देखा। ताऊ ने दूसरे हंसों को बुलाकर कहा, “देखो, इस बेल को नष्ट कर दो। एक दिन यह बेल हम सबको मौत के घाट उतार देगी।” एक युवा हंस हंसा और बोला, “ताऊ, यह छोटी सी बेल हमें मार सकती है”

बूढ़े हंस ने समझाया, “आज यह तुम्हें छोटा लगता है। धीरे-धीरे यह पेड़ के पूरे तने को लपेटकर ऊपर आ जाएगी। फिर बेल का तना मोटा होने लगेगा और पेड़ से चिपक जाएगा, फिर नीचे से पेड़ पर चढ़ने के लिए सीढ़ी बनेगी। सीढ़ी चढ़कर कोई भी शिकारी हम तक पहुंच जाएगा और हम मारे जाएंगे।

दूसरा हंस विश्वास नहीं कर सका, “एक छोटी सी बेल सीढ़ी कैसे बन सकती है?”

तीसरा हंस बोला “ताऊ, तु तो एक छोटी-सी बेल को खींचकर ज्यादा ही लम्बा कर रहा है। “

एक हंस बडबडाया ” यह ताऊ अपनी अक्ल का रौब डालने के लिए अंट-शंट कहानी बना रहा हैं।”

इस तरह किसी ने ताऊ की बात को गंभीरता से नहीं लिया। उनमें इतनी दूर देखने की अक्ल कहाँ थी?

समय बीतता रहा। बेल लिपटते-लिपटते ऊपर शाखों तक पहुंच गई। बेल का तना मोटा होने लगा और सचमुच पेड़ के तने पर सीढ़ी बन गई। जिस पर आसानी से चढ़ा जा सकता था। ताऊ की बातों में सबको सच्चाई नजर आने लगी लेकिन अब कुछ नहीं किया जा सकता था क्योंकि बेल इतनी मजबूत हो गई थी कि उसे नष्ट करना हंसों के बस की बात नहीं थी। एक दिन जब सब हंस दाना चुगने बाहर गए हुए थे तब एक बहेलिआ उधर आया। पेड पर बनी सीढी को देखते ही उसने पेड पर चढकर जाल बिछाया और चला गया। शाम को जब सभी हंस लौटे और पेड़ पर उतरे तो बहेलिए के जाल में बुरी तरह फंस गए। जब वे जाल में फंस गए और फड़फड़ाने लगे, तब उन्हें ताऊ की सूझबूझ और दूरदर्शिता का पता चला। ताऊ की बात न मानने पर सभी शर्मिंदा थे और खुद को कोस रहे थे। ताऊ सबसे रुष्ट था और चुप बैठा था।

एक हंस ने हिम्मत करके कहा, “ताऊ, हम मूर्ख हैं, लेकिन अब हमसे मुँह मत मोड़ना।”

दूसरे हंस ने कहा, “इस संकट से निकलने का उपाय तो आप ही बता सकते हैं। हम आगे आपकी बात नहीं टालेंगे।” सभी हंस सहमत हो गए, तब ताऊ ने उनसे कहा, “मेरी बात ध्यान से सुनो। जब सुबह बहेलिया आएगा, तो मरा हुआ होने का नाटक करना। बहेलिया तुम्हें मरा समझकर जाल से निकालकर जमीन पर रखेगा।” वहां भी तुम मुर्दे की तरह पड़े रहना। जैसे ही वह आखिरी हंस को नीचे रखेगा, तभी मैं सीटी बताऊंगा मेरी सीटी सुनते ही सब एक साथ उड़ जाएंगे।

बहेलिया सुबह आया। हंसो ने वैसा ही किया जैसा ताऊ ने समझाया था। सचमुच बहेलिया हंसों को मरा समझकर जमीन पर पटकता चला गया। सीटी की आवाज के साथ ही सारे हंस उड़ गए। बहेलिया अवाक देखता रहा।

सीखः बुद्धिमानों की सलाह गंभीरता से लेनी चाहिए।

सफलता का रहस्य {moral story in hindi for class 5}

एक बार एक शिष्य ने अपने गुरु से पूछा कि सफलता का रहस्य क्या है? गुरु ने उस शिष्य से कहा कि कल तुम मुझसे नदी के किनारे मिलो। वे दोनों नदी के पास मिले। तब गुरु ने शिष्य को अपने साथ नदी की ओर चलने को कहा। और आगे बढ़ते हुए जब पानी गर्दन तक पहुँच गया, तो अचानक गुरु ने शिष्य का सिर पकड़कर उसे डुबो दिया। शिष्य ने बाहर निकलने के लिए संघर्ष किया, लेकिन गुरु मजबूत थे और उन्हें तब तक डूबे रखा जब तक कि वह नीला नहीं हो गया।

फिर गुरु ने उसका सिर पानी से बाहर निकाला और बाहर आते ही सबसे पहला काम जो शिष्य ने किया वह था हांफते हुए तेजी से सांस लेना। गुरु ने पूछा, “जब तुम पानी के अंदर थे तब तुम सबसे अधिक क्या चाहते थे?” लड़के ने उत्तर दिया, “सांस लेना।” गुरु ने कहा, “यही सफलता का रहस्य है।”

जब आप सफलता को उतनी ही बुरी तरह से चाहोगे जितनी कि आप सांस लेना चाहते हो तो वह आपको मिल ही जाएगी” इसके अलावा और कोई रहस्य नहीं है।

शिष्टाचार {Moral story in hindi for education}

स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है कि दुनिया में ज्यादातर लोग इसलिए असफल हो जाते हैं क्योंकि उन्हें समय पर साहस नहीं मिलता और वे भयभीत हो जाते हैं।

1893 में शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन चल रहा था। उसमें स्वामी विवेकानंद भी बोलने गए थे। 11 सितंबर को स्वामी जी का व्याख्यान होना था। मंच पर ब्लैकबोर्ड पर लिखा था- हिन्दू धर्म मृत धर्म है। एक साधारण व्यक्ति यह देखकर क्रोधित हो सकता था, पर स्वामी जी ऐसा कैसे कर सकते थे? वह बोलने के लिए खड़ा हुए और श्रोताओं को इन शब्दों (अमेरिकी बहनों और भाइयों) से संबोधित किया।

स्वामी जी की बातों ने जादू कर दिया, सारी सभा ने तालियों से उनका स्वागत किया। इस खुशी का कारण महिलाओं को पहला स्थान देना था। स्वामी जी ने सारी वसुधा को अपना कुटुबं मानकर सबका स्वागत किया था। भारतीय संस्कृति में निहित शिष्टाचार की यह पद्धति का अच्छा असर हुआ। श्रोता मंत्रमुग्ध होकर उन्हें सुनते रहे, निर्धारित 5 मिनट कब बीत गए उन्हें पता ही नहीं चला। अध्यक्ष, कार्डिनल गिबन्स ने आगे बोलने का अनुरोध किया। स्वामीजी 20 मिनट से अधिक समय तक बोलते रहे।

स्वामीजी की धूम सारे अमेरिका में मच गई। देखते ही देखते हजारों लोग उनके शिष्य बन गए। अपने व्याख्यान से स्वामीजी ने यह सिद्ध कर दिया कि हिन्दू धर्म भी श्रेष्ठ है, जिसमें सभी धर्मो को अपने अंदर समाहित करने की क्षमता है।

भारतीय संसकृति, किसी की अवमानना या निंदा नहीं करती। इस तरह स्वामी विवेकानंद जी ने सात समंदर पार भारतीय संसकृति की ध्वजा फहराई।

संगति का असर {Short Story for Kids}

एक बार एक राजा शिकार के उद्देश्य से अपने काफिले के साथ एक जंगल से गुजर रहा था। शिकार दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा था, वे धीरे-धीरे घने जंगल में घुस गए। अभी वह कुछ ही दूर गया था कि उसे कुछ डाकुओं के छिपने की जगह दिखाई दी। जैसे ही वे उसके पास पहुँचे, पास के पेड़ पर बैठा तोता बोला – “पकड़ो, पकड़ो, एक राजा आ रहा है। उसके पास बहुत माल है, लूट लो, लूट लो, जल्दी आओ, जल्दी आओ।”

तोते की आवाज सुनकर सभी डाकू राजा की ओर दौड़ पड़े। डाकुओं को अपनी ओर आते देख राजा और उसके सैनिक भाग खड़े हुए। कोसों दूर भागने के बाद सामने एक बड़ा पेड़ दिखाई दिया। राजा और उसके सैनिक कुछ देर आराम करने के लिए उस पेड़ के पास गए, जैसे ही वह पेड़ के पास पहुंचे तो उस पेड़ पर बैठे तोते ने कहा – आओ राजन, हमारे ऋषि महात्मा की कुटिया में स्वागत है। अंदर आओ, पानी पियो और आराम करो।

इस तोते की बात सुनकर राजा हैरान रह गया, और सोचने लगा कि एक ही जाति के दो प्राणियों का व्यवहार इतना अलग कैसे हो सकता है, राजा को कुछ समझ नहीं आया। वह तोते की बात मानकर भीतर साधु की कुटिया की ओर गया, साधु को प्रणाम किया और उसके पास बैठ गया और अपनी सारी कहानी सुनाई। और फिर धीरे से पूछा, “ऋषिवर इन दोनों तोतों के व्यवहार में इतना अंतर क्यों है।”

साधू महात्मा धैर्य से सारी बातें सुनी और बोले, ” ये कुछ नहीं राजन बस संगति का असर है। डाकुओं के साथ रहकर तोता भी डाकुओं की तरह व्यवहार करने लगा है और उनकी ही भाषा बोलने लगा है। अर्थात जो जिस वातावरण में रहता है वह वैसा ही बन जाता है।

विद्वानों की संगति से मूर्ख भी विद्वान हो जाता है और विद्वान भी यदि मूर्खों की संगति में रहे तो उसमें भी मूर्खता आ जाती है। इसलिए सोच समझ कर संगत करनी चाहिए।

शेर और सियार {panchatantra story in hindi with moral}

बहुत समय पहले की बात है हिमालय के जंगलों में एक बहुत ताकतवर शेर रहता था। एक दिन उसने बारहसिंघे का शिकार किया और खाकर अपनी गुफा में लौटने लगा। वह अभी चल ही रहा था कि एक गीदड़ उसके सामने दंडवत् हो गया और उसकी प्रशंसा करने लगा।

उसे देख शेर ने पूछा, ” अरे! तुम ये क्या कर रहे हो ?”

‘हे वन के राजा, मैं आपका सेवक बनकर अपना जीवन धन्य करना चाहता हूं, कृपया मुझे अपनी शरण में लें और मुझे अपनी सेवा का अवसर दें।”, सियार ने कहा।

शेर जानता था कि सियार का असली मकसद उसके द्वारा छोड़े गए शिकार को खाना है, पर उसने सोचा कि चलो इसके साथ रहने से मेरे क्या नुकसान हैं, और कुछ तो छोटे-मोटे काम ही कर दिया करेगा. और उसने सियार को अपने साथ रहने की अनुमति दे दी।

उस दिन के बाद से शेर जब भी शिकार करता तो सियार भी पेट भर कर खाता। समय बीतता गया और रोज मांसाहार खाने से गीदड़ का बल भी बढ़ गया। इसी हेकड़ी में अब वह जंगल के बाकी जानवरों पर रौब जमाने लगा। और एक दिन हद ही पार कर दी।

उसने शेर से कहा, “आज तुम आराम करो, मैं शिकार करूंगा और तुम मेरे द्वारा छोड़े गए मांस को खाओगे।”

यह सुनकर शेर को बहुत गुस्सा आया, लेकिन अपने गुस्से पर काबू करके उसने सियार को सबक सिखाना चाहा।

शेर ने कहा, “यह तो बहुत अच्छी बात है, आज तो भैंसे को खाने का मन हो रहा है, तुम उसी का शिकार कर लाओ!”

सियार तुरंत भैंसों के झुण्ड की तरफ निकल पड़ा, और दौड़ते हुए एक बड़े से भैंसे पर झपटा, भैंसा सतर्क था उसने तुरंत अपनी सींघ घुमाई और सियार को दूर झटक दिया. सियार की कमर टूट गयी और वह किसी तरह घिसटते हुए शेर के पास वापस पहुंचा.

‘क्या हुआ; भैंसा कहाँ है ? “, शेर बोला .

‘हुजूर, मुझे क्षमा कीजिये, मैं बहक गया था और खुद को आपके बराबर समझने लगा था. सियार गिडगिडाते हुए बोला.

“धूर्त, तेरे जैसे एहसानफरामोश का यही हस्र होता है, मैंने तेरे ऊपर दया कर के तुझे अपने साथ रखा और तू मेरे ऊपर ही धौंस जमाने लगा, ” और ऐसा ” कहते हुए शेर ने अपने एक ही प्रहार से सियार को ढेर कर दिया.

किसी के किये गए उपकार को भूलकर उसे ही नीचा दिखाने वाले लोगों का वही हस्र होता है जो इस कहानी में सियार का हुआ।

हमें हमेशा अपनी वर्तमान योग्यताओं का सही आंकलन करना चाहिए और घमंड में आकर किसी तरह का मूर्खतापूर्ण कार्य नहीं करना चाहिए।

जोकर की सीख {A motivational moral story}

एक बार एक जोकर सर्कस में लोगों को एक चुटकुला सुना रहा था। चुटकुला सुनकर लोग जोर-जोर से हंसने लगे। कुछ देर बाद जोकर ने फिर वही चुटकुला सुनाया। इस बार कम लोग हंसे। कुछ और समय के बाद, जोकर तीसरी बार वही चुटकुला सुनाने लगा लेकिन इससे पहले कि वह अपनी बात पूरी करता, बीच में एक दर्शक ने कहा, “अरे! एक ही चुटकुला कितनी बार सुनाओगे.…. “कुछ और सुनाओ अब इस पर हंसी नहीं आती। “

जोकर थोड़ा गंभीर होते हुए बोला, ” धन्यवाद भाई साहब, यही तो मैं भी कहना चाहता हूँ….. जब ख़ुशी के एक कारण की वजह से आप लोग बार-बार खुश नहीं हो सकते तो दुःख के एक कारण से बार-बार दुखी क्यों होते हो, भाइयों हमारे जीवन में अधिक दुःख और कम ख़ुशी का यही कारण है… हम ख़ुशी को आसानी से छोड़ देते हैं पर दुःख को पकड़ कर बैठे रहते हैं।

मित्रों, जिस तरह हम एक ही खुशी को बार-बार महसूस नहीं करना चाहते, उसी तरह हमें एक ही दुख से बार-बार दुखी नहीं होना चाहिए।

आशा करते हैं ये नैतिक शिक्षा से जुड़ी मोरल स्टोरी आपको अच्छी लगी होंगी और आपको इनसे जीवन में प्रेरणा मिलेगी।

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