महाभारत कथा के अनुसार द्रौपदी पांचाल नरेश ध्रुपद की पुत्री थी तथा पांचों पांडवों की पत्नी थी। इनका जन्म यग कुंड से ही हुआ था इसलिए इन्हें यगसेनी भी कहा जाता है। कृष्णेयी, महाभारती, सैरंध्री, पांचाली, अग्निसुता आदि इनके अन्य नाम हैं।

शास्त्र | महाभारत |
नाम | द्रौपदी |
अन्य नाम | यगसेनी, कृष्णेयी, महाभारती, सैरंध्री, पांचाली, अग्निसुता |
संबंध | पांचाल, कुरुवंश |
जीवनसाथी | पाण्डव (युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव) |
पिता | द्रुपद |
भाई-बहन | धृष्टद्युम्न (भाई), शिखंडी (बहन बाद में भाई), सत्यजीत (भाई) |
संतान | संतान प्रतिविंध्य (युधिष्ठिर से) शैतानिका (नकुल से) सुतसोम (भीम से) श्रुतसेना (सहदेव से) श्रुतकर्मा (अर्जुन से) सुथनु और प्रगति (बेटियाँ)। |
पूर्व जन्म
अपने पिछले जन्म में द्रोपदी का नाम इंद्रसेना था। वे ऋषि मुद्गल की पत्नी थीं अतः उन्हें मुद्गलनी भी कहा जाता था। उनके पति मुद्गल की अल्प आयु में ही मृत्यु हो जाने के बाद वह भगवान शिव की तपस्या करने लगी। भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसे वरदान मांगने को कहा तब मुद्गलनी ने कहा प्रभु मुझे आपके जैसा सभी गुणों से संपन्न पति चाहिए। इस पर शिव जी ने कहा कि किसी एक व्यक्ति में मेरे सारे गुण सम्भव नहीं हो सकते अतः तुम्हें अगले जन्म में तुम्हें पांच पतियों की प्राप्ति होगी।
जन्म
द्रौपती के पिता ध्रुपद तथा द्रोणाचार्य बचपन के मित्र थे। बाद में ध्रुपद पांचाल के राजा बन गए और द्रोणाचार्य जो एक गरीब ब्राम्हण थे, विवाह करके ग्रहस्त जीवन बिताने लगे। एक दिन अपनी दरिद्रता से तंग आकर वे अपने बचपन के मित्र ध्रुपद से मिलने पांचाल गए परन्तु द्रुपद ने उन्हें पहचानने से मना कर दिया और उन्हें अपमानित भी किया। सभा में उपस्थित अन्य मंत्रीगण ने भी उनका उपहास उड़ाया।
द्रोण अपने अपमान का बदला लेने का निर्णय किया और वे हस्तिनापुर आकर कौरव-पांडवों के गुरु बन गए और उन्हें शिक्षा देने लगे। शिक्षा पूरी होने के उपरांत जब कौरव-पांडवों ने उन्हें गुरु दक्षिणा देना चाहा तब द्रोण ने कहा मेरी बस एक ही गुरु दक्षिणा है कि पांचाल देश के राजा द्रुपद को बंदी बनाकर मेरे सामने खड़ा कर दो। कौरव-पांडवों ने युद्ध की आज्ञा लेकर पांचाल देश पर आक्रमण कर दिया दोनों के बीच भीषण युद्ध हुआ। पांचाल की विशाल सेना से भयभीत होकर दुर्योधन और साथी युद्ध छोड़कर भाग गए। दूसरी ओर पांडव साहस पूर्वक युद्ध करते रहे। भीमसेन तथा अर्जुन के पराक्रम के समक्ष द्रुपद की सेना हार गई। अर्जुन द्रुपद को बंदी बना लेता है और उसे ले जाकर गुरु द्रोण के सम्मुख ला खड़ा कर देता है।
द्रोण ने द्रुपद कहा तुम अपना राज हार चुके हो अतः उस पर अब मेरा अधिकार है, तुमने मुझसे कहा था जब मेरे बराबर के हो जाना तब स्वमं को मेरा मित्र कहना इसलिए में तुम्हरा आधा राज्य वापस करता हूँ। बताओ क्या तुम मेरी मित्रता स्वीकार करते हो? द्रुपद ने द्रोण से अपनी गलती के क्षमा मांगी और कहा मैं आपके आधीन हैं, अब आपकी जो इच्छा हो करें। द्रोण उसे क्षमा करते हुए गले से लगा लेते है और उसे जाने की अनुमति दे देते हैं।
ध्रुपद वहां से लौट तो आये परन्तु अपने अपमान को भूल नहीं पाए। वह द्रोण से प्रतिशिध लेने के एक ऐसे पुत्र की कामना लेकर जो द्रोण का वध का सके, उपयाज नामक ऋषि के पास गए परन्तु इसे अधर्म बताते हुए मना कर दिया। द्रुपद के आग्रह करने पर ऋषि ने उन्हें अपने जेष्ट भाई याज के बारे में बताया की उन्हें पवित्रा-अपवित्रता का विशेष ज्ञान नहीं है वे आपकी सहायता अवश्य करेंगे। पांचाल नरेश याज के आश्रम जाते है और उन्हें पूरा बात बताते हैं। ध्रुपट के आग्रह पर ऋषि याज पुत्र प्राप्ति हेतु एक विशाल अग्नि यग करते हैं जिससे एक पुत्र और बालिका उत्पन्न हुए। पुत्र का नाम धृष्टद्युम्न एवं पुत्री का नाम द्रौपदी रखा गया।
द्रौपदी स्वयंवर
द्रुपद ने द्रौपती के विवाह हेतु एक स्वयंबर का आयोजन किया जिसमे आर्यावर्त के कई राजा और राजकुमारों ने भाग लिया। इस स्वयंबर की शर्त ये थी की जो भी वीर घुमती हुई मछली की प्रतिबिम्ब को देखकर केवल पांच बाणों से उसकी आँख को भेदेगा राजकुमारी उसी के गले में जयमाला डालेंगी। महाराज द्रुपद ने ऐसा आयोजन अर्जुन की वीरता और पराक्रम को देखने के बाद ही किया था, क्योकि वे अर्जुन को ही अपना दामाद बनाना चाहते थे।