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कौआ मेघवर्ण और उल्लू अरिमर्दन की कहानी हिंदी में (Crow and Owl Story)

कहानियां हमारा मनोरंजन करने के साथ-साथ हमें प्रेरित भी करती हैं। पंचतंत्र की कहानियाँ हमें भले-बुरे की पहचान कराती हैं, साथ ही संकट के समय धैर्य, साहस और बुद्धि से काम करने की शिक्षा देती हैं। नैतिक शिक्षा पर आधारित ऐसी ही प्रेरणादायक कौआ और उल्लू (Crow and Owl Story) की कहानी बताने जा रहा हूं।

Crow and Owl Story in Hindi पंचतंत्र की कहानी- कौआ और उल्लू

एक समय की बात हैं कि एक जंगल में विशाल बरगद का पेड था। उस बरगद पर हजारों कौए वास करते थे। उसी पेड पर मेघवर्ण नामक कौआ भी रहता था जो सभी कौओं का राजा था।

बरगद के पेड़ के पास एक पहाड़ी थी, जिसमें बहुत सी गुफाएँ थीं। उन‌ गुफाओं में उल्लू रहते थे, जिनका राजा अरिमर्दन था। अरिमर्दन बहुत पराक्रमी था, जो कौओं से बहोत नफरत करता था। रात में उल्लू कौओं पर हमला करते और कई कौओं को मार डालते।

उल्लुओं के इस तरह के अत्याचार बहुत से कौए मारे जाने लगे जिससे कौओं के राजा मेघवर्ण को बहुत चिन्ता होने लगी। इस समस्या पर विचार करने के लिए मेघवर्ण ने कौओं की एक सभा बुलाई। “आप जानते हैं कि उल्लुओं के हमलों से हमारा जीवन असुरक्षित हो गया है। हमारे दुश्मन ताकतवर हैं और घमंडी भी, हम रात में नहीं देख सकते हैं इसलिए रात में हमला करते करते हैं। हम दिन के दौरान जवाबी कार्रवाई नहीं कर सकते, क्योंकि वे गुफाओं के अंधेरे में सुरक्षित रहते हैं।”

जब बहुत अधिक कौए मारे जाने लगे तो उसने कौओं की एक सभा इस समस्या पर विचार करने के लिए बुलाई। बोला “मेरे प्यारे कौओ, आपको तो पता ही हैं कि उल्लुओं के आक्रमणों के कारण हमारा जीवन असुरक्षित हो गया हैं । हमारा शत्रु शक्तिशाली हैं और अहंकारी भी हम पर रात को हमले किए जाते हैं। हम रात को देख नहीं पाते। हम दिन में जवाबी हमला नहीं कर पाते, क्योंकि वे गुफाओं के अंधेरों में सुरक्षित बैठे रहते हैं।”

फिर मेघवर्ण ने बुजुर्ग और बुद्धिमान कौओं से अपना-अपना सुझाव रखने के लिए कहा।

एक डरपोक कौआ बोला “हमें उल्लुओं से संधि कर लेना चाहिए। वह जो भी शर्तें रखते हैं, हमें उन्हें स्वीकार करना चाहिए। अपने से बलवान शत्रु से पिटने का क्या फायदा है?”

बहुत-से कौओं ने उसका करके विरोध किया। एक गर्म दिमाग का कौआ चीख कर बोला “हमें उन दुष्टों से कोई समझौता नहीं करना चाहिए। सब उठो और उन पर आक्रमण कर दो।”

एक निराशावादी कौए ने कहा, “दुश्मन बलवान है। हमें यह स्थान छोड़ देना चाहिए।”

स्याने कौए ने सलाह दी ” अपना घर छोडना ठीक नहीं होगा। हम यहाँ से गए तो बिल्कुल ही टूट जाएंगे। हमे यहीं रहकर और पक्षियों से सहायता लेनी चाहिए।”

बुद्धिमान कौए ने सलाह दी, “अपना घर छोड़ना ठीक नहीं होगा। यदि हम यहां से चले गए तो हम पूरी तरह से टूट जाएंगे। हमें यहीं रहना चाहिए और दूसरे पक्षियों की सहायता लेनी चाहिए।”

कौवों में सबसे चतुर और बुद्धिमान एक स्थिरजीवी नाम का कौआ था, जो चुपचाप बैठा सबकी दलीलें सुन रहा था। राजा मेघवर्ण उसकी ओर मुखातिब हुए “श्रीमान, आप चुप हैं। मैं आपकी राय जानना चाहता हूं।”

स्थिरजीवी ने कहा, “महाराज, यदि शत्रु अधिक शक्तिशाली है, तो छलनीति का उपयोग करना चाहिए।”

“कैसी छलनीति? मुझे साफ-साफ बताओ, स्थिरजीवी” राजा ने कहा।

स्थिरजीवी ने कहा, “आप मुझे भला-बुरा कहिये हैं और मुझ पर घातक कीजिए।

मेघवर्ण चौंकाकर बोला “यह क्या कह रहे हो स्थिरजीवी?”

स्थिरजीवी राजा मेघवर्ण के समीप जाकर कान मे बोला “छलनीति के लिए हमें यह नाटक करना पडेगा। हमारे चारों ओर के पेड़ों पर उल्लू जासूस हमारी बैठक की सारी कार्यवाही देख रहे हैं। उन्हें दिखाने के लिए हमें यह नाटक करना होगा।” इसके बाद आप सभी कौओं को लेकर ऋष्यमूक पर्वत पर जाकर मेरी प्रतीक्षा करें। मैं उल्लुओं के समूह में शामिल होकर उनके विनाश के लिए सामान इकट्ठा करूंगा। मैं घर का भेदी बनकर उनकी लंका ढाऊंगा।”

फिर ड्रामा शुरू हुआ। स्थिरजीवी चिल्लाकर बोला “मैं जैसा कहता हूं, वैसा कर राजा के बच्चे क्यों हमें मरवाने पर तुला हैं?”

मेघवर्ण चिल्लाया, “गद्दार, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई राजा से इतनी बदतमीजी से बात करने की?” बहुत से कौवे एक साथ चिल्लाए, “इस धोखेबाज को मार डालो।”

राजा मेघवर्ण ने अपने पंखों से स्थिरजीवी को जोरदार झापड मारकर डाली से गिरा दिया और घोषणा की “मैं गद्दार स्थिरजीवी को कौवा समाज से बाहर कर रहा हूं। अब से कोई भी कौवा इस बदमाश के साथ कोई संबंध नहीं रखेगा।”

पास के वृक्षों पर छिपे गुप्तचर उल्लू की आँखें चमक उठीं। गुप्तचरों ने उल्लुओं के राजा को सूचित किया कि कौवे पड़ गई है। मारपीट और गाली-गलौज हो रही है। यह सुनकर उल्लुओं के सेनापति ने राजा से कहा, “महाराज, यही मौका है कि आप कौवे पर हमला करें। इस समय हम उन्हें आसानी से हरा देंगे।”

उल्लुओं के राजा अरिमर्दन को सेनापति की सलाह अच्छी लगी। उसने तुरंत हमले का आदेश दिया। फिर क्या था, हजारों उल्लुओं की सेना बरगद के पेड़ पर हमला करने के लिए गए, लेकिन वहां एक भी कौआ नहीं मिला।

मिलते भी कैसे? योजना के अनुसार मेघवर्ण ने सभी कौवों को लेकर ऋष्यमूक पर्वत की ओर कूच किया था। पेड़ को खाली पाकर उल्लुओं के राजा ने थूका, “कौवे हमारा सामना करने के बजाय भाग गए। ऐसे कायरों पर हम हजार बार थूकते हैं।” सभी उल्लू हू हू की आवाज करते हुए अपनी जीत की घोषणा करने लगे। झाड़ियों में लेटा एक जीवित कौवा यह सब देख रहा था। स्थिरजीवी ने कान-कान की ध्वनि की। उसे देखकर जासूस उल्लू बोला, “अरे यह तो वही कौआ है, जिसे उनका राजा धक्के देकर अपमानित कर रहा था।”

उल्लुओं का राजा भी आया। उन्होंने पूछा, “आपकी यह दुर्दशा कैसे हुई?” स्थिरजीवी ने कहा, “मैं राजा मेघवर्ण का नीति मंत्री था। मैंने उसे अच्छी सलाह दी थी कि इस समय उल्लुओं का नेतृत्व एक शक्तिशाली राजा कर रहा है। हमें उल्लुओं की अधीनता स्वीकार करनी चाहिए। मेरी बात सुनकर मेघवर्ण क्रोधित हो गया और मुझे फटकार कर अपनी जाति से बाहर कर दिया। कृपा मुझे अपनी आश्रय में ले लीजिए।”

कौआ और उल्लू – पंचतंत्र की कहानी हिंदी में

उल्लुओं का राजा अरिमर्दन सोच में पड़ गया। उसके बुद्धिमान नीति सलाहकार ने उसके कान में कहा, “राजन्, शत्रु की बातों पर विश्वास मत करो। वह हमारा शत्रु है। उसे मार डालो।” एक चापलूस मंत्री ने कहा, “नहीं, महाराज! इस कौए को आपके साथ मिलाने से बड़ा लाभ होगा। यह हमें कौवे के घर के रहस्य बताएगा।”

राजा ने भी अपने साथ स्थिरजीवी को मिलाने में लाभ देखा और वह स्थिरजीवी कौए को अपने साथ ले गए। वहाँ अरिमर्दन ने उल्लू सेवकों से कहा “सीढ़ीजीवी को गुफा के शाही अतिथि कक्ष में ठहराया जाए। उसे कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए।”

स्थिरजीवी ने हाथ जोड़कर कहा, “महाराज, आपने मुझे शरण दी है, बस इतना ही काफी है। मुझे अपनी गुफा के बाहर एक पत्थर पर नौकर की तरह रहने दो। मैं वहाँ बैठ कर आपकी गुण गाता रहूंगा।” इस प्रकार स्थिरजीवी ने शाही गुफा के बाहर डेरा डाला।

गुफा में नीति सलाहकार ने फिर राजा से कहा, “महाराज! शत्रु पर विश्वास न करें। उसे अपने घर में स्थान देना आत्महत्या करने के समान है।” अरिमर्दन ने गुस्से से उसकी ओर देखा। “मुझे बहुत अधिक नीति समझाने की कोशिश मत करो। तुम चाहो तो यहाँ से जा सकते हो।” नीति सलाहकार उल्लू अपने दो-तीन मित्रों सहित हमेशा के लिए यह कह कर चला गया, “विनाशकाले विपरीत बुद्धि । “

कुछ दिनों बाद स्थिरजीवी लकडियां लाकर गुफा के द्वार के पास रखने लगा, “सरकर, सर्दी आने वाली है। मैं खुद को ठंड से बचाने के लिए लकड़ी की झोपड़ी बनाना चाहता हूं।’ धीरे-धीरे काफी लकड़ी जमा हो गई। एक दिन जब सारे उल्लू सो रहे थे, तो स्थिरजीवी वहाँ से उड़कर ऋष्यमूक पर्वत पर पहुँचे, जहाँ मेघवर्ण सहित अन्य कौए उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे।। स्थिरजीवी ने कहा, “अब तुम सब पास के जंगल से जहाँ आग लगी हो, अपनी चोंच में जलती लकड़ी का एक-एक टुकड़ा उठाओ और मेरे पीछे आओ।”

कौओं की सेना चोंच में जलती लकडियां पकड स्थिरजीवी के साथ उल्लुओं की गुफाओं में आ पहुंचा। स्थिरजीवी द्वारा ढेर की गई लकड़ी में आग लगा दी गई। सभी उल्लू जलने या दम घुटने से मर गए। राजा मेघवर्ण ने स्थिरजीवी को कौआ रत्न की उपाधि दी।

सीख: शत्रु को अपने घर में शरण देना अपने विनाश के लिए सामग्री जुटाना है।

आशा करते हैं कौए और उल्लू की रह कहानी आपको जीवन में कुछ नया सीखने की प्रेरणा देगी, कहानी को अंत पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद।

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