प्रस्तावना – अनुशासन शब्द अनु + शासन के योग से बना है। शासन का अर्थ है नियम आज्ञा तथा अनु का अर्थ है पीछे चलना, पालन करना। इस प्रकार अनुशासन का अर्थ शासन का अनुसरण करना है। किन्तु इसे परतन्त्रता मान लेना नितान्त अनुचित है। विकास के लिए तो नियमों का पालन आवश्यक है। युवक की सुख शान्तिमय प्रगतिशीलता का संसार छात्रावस्था पर अवलम्बित है। अनुशासन आत्मानुशासन का ही एक अंग है।
अनुशासन की आवश्यकता
जीवन की सफलता का मूलाधार अनुशासन है। समस्त प्रकृति अनुशासन में बंधकर गतिवान रहती है। सूर्य, चन्द्रमा, नक्षत्र, सागर, नदी, झरने, गर्मी, सत् वर्षा एवं वनस्पतियाँ आदि सभी अनुशासित है।
अनुशासन सरकार, समाज तथा व्यक्ति तीन स्तरों पर होता है। सरकार के नियमों का पालन करने के लिए पुलिस, न्याय, दण्ड, पुरस्कार आदि की व्यवस्था रहती है। ये सभी शासकीय नियमों में बंधकर कार्य करते हैं। सभी बुद्धिमान व्यक्ति उन नियमों पर चलते हैं तथा जो उन नियमों का पालन नहीं करते हैं, वे दण्ड के भागी होते हैं।
सामाजिक व्यवस्था हेतु धर्म, समाज आदि द्वारा बनाये गये नियमों का पालन करने वाले व्यक्ति सभ्य, सुशील तथा विनम्र होते हैं। जो लोग अनुशासनहीन होते हैं, वे असभ्य एवं उद्दण्ड की संज्ञा से अभिहित किये जाते हैं तथा दण्ड के भागी होते हैं। अनुशासन न मानने वाले व्यक्ति को समाज में हीन तथा बुरा माना जाता है। व्यक्ति स्वयं अनुशासित रहे तो उसका जीवन स्वस्थ, स्वच्छ तथा सामर्थ्यवान बनता है। वह स्वयं तो प्रसन्न रहता है, दूसरों को भी अपने अनुशासित होने के कारण प्रसन्न रखता है।
ऋषि-महर्षि अध्ययन के बाद अपने शिष्यों को विदा करते समय अनुशासित रहने पर बल देते थे। वे जानते थे कि अनुशासित व्यक्ति ही किसी उत्तरदायित्व को वहन कर सकता है। अनुशासित जीवन व्यतीत करना वस्तुतः दूसरे के अनुभवों से लाभ उठाना है। समाज ने जो नियम बनाये हैं वे वर्षों के अनुभव के बाद सुनिश्चित किये गये हैं। भारतीय मुनियों ने अनुशासन को अपरिहार्य माना, ताकि व्यक्ति का समुचित विकास हो सके। आदेश देने वाला व्यक्ति प्रायः आज्ञा दिये गये व्यक्ति का हित चाहता है। अतएव अनुशासन में रहना तथा अनुशासन को अपने आचरण में ढाल लेना आवश्यक है।
अनुशासन के लाभ
अनुशासन के असीमित लाभ हैं। प्रत्येक स्तर की व्यवस्था के लिए अनुशासन आवश्यक है। राणा प्रताप, शिवाजी, सुभाषचन्द्र बोस, महात्मा गाँधी आदि ने इसी के बल पर सफलता प्राप्त की। इसके बिना बहुत हानि होती है। सन् 1857 में अंग्रेजों के विरुद्ध लड़े गये स्वतन्त्रता संग्राम की असफलता का कारण अनुशासनहीनता थी। 31 मई को सम्पूर्ण उत्तर भारत में विद्रोह करने का निश्चय था, लेकिन मेरठ की सेनाओं ने 10 मई को ही विद्रोह कर दिया, जिससे अनुशासन भंग हो गया। इसका परिणाम सारे देश को भोगना पड़ा। सब जगह एक साथ विद्रोह न होने के कारण फिरंगियों ने विद्रोह को कुचल दिया।
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने शान्तिपूर्वक विशाल अंग्रेजी साम्राज्यवाद की नींव हिला दी। थी। उसका एकमात्र कारण अनुशासन की भावना थी। महात्मा गांधी की आवाज पर सम्पूर्ण देश सत्यामह के लिए चल देता था। अनेकानेक कष्टों को भोगते हुए भी देशवासियों ने सत्य और
अहिंसा का मार्ग नहीं छोड़ा। पहली बार जब कुछ सत्याग्रहियों ने पुलिस के साथ मारपीट तथा दंगा कर डाला तो महात्माजी ने तुरन्त सत्याग्रह बन्द करने की आज्ञा देते हुए कहा कि ” अभी देश सत्याग्रह के योग्य नहीं है। लोगों में अनुशासन की कमी है।” उन्होंने तब तक पुनः सत्याग्रह प्रारम्भ नहीं किया, जब तक उन्हें लोगों के अनुशासन के बारे में विश्वास नहीं हो गया। अतएव अनुशासन द्वारा लोगों में विश्वास की भावना पैदा की जाती है। अनुशासन विश्वास का एक महामन्त्र है।
सेना की सफलता का आधार अनुशासन होता है। सेना और भीड़ में अन्तर ही यह है कि भीड़ में कोई अनुशासन नहीं होता, जबकि सेना अनुशासित होती है। नेपोलियन, समुद्रगुप्त तथा सिकन्दर आदि महान् कहे जाने वाले सेनानायकों ने जो विजय पर विजय प्राप्त कीं, उनके मूल में उनकी सेनाओं का अनुशासित होना ही था।
यातायात, अध्ययन, वार्तालाप आदि में भी अनुशासन आवश्यक है। रेल ड्राइवर सिगनल होने पर ही गाड़ी आगे बढ़ाता है। अनुशासन के द्वारा ही एक अध्यापक पचास-साठ छात्रों की कक्षा को अकेले पढ़ाता है। राष्ट्रपति से लेकर निम्नतम कर्मचारी तक सारी शासन-व्यवस्था अनुशासन से ही संचालित रहती है। शरीर में किंचित अव्यवस्था होते ही रोग लग जाता है।
छात्रानुशासन
अनुशासन विद्यार्थी जीवन का तो अपरिहार्य अंग है। चूँकि विद्यार्थी देश के भावी कर्णधार होते हैं, देश का भविष्य उन्हीं पर अवलम्बित होता है। उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि वे स्वयं अनुशासित, नियन्त्रित तथा कर्तव्यपरायण होकर देश की जनता का मार्गदर्शन करें, उसे अन्धकार के गर्त से निकालकर प्रकाश की ओर ले जायें। अतः उनके लिए अनुशासित होना आवश्यक है।
अनुशासन के सन्दर्भ में मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जीवन प्रेरणादायी है। अनुशासन में रहने के कारण ही राम मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाने के अधिकारी हुए। अनुशासन के अधीन वे राजतिलक त्यागकर वनवासी बन जाते हैं तथा अपनी पत्नी का परित्याग कर प्रजा की आज्ञा का पालन करते हैं। इस सबका कारण है—उनका अनुशासित जीवन ।
उपसंहार
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि जीवन में महान् बनने के लिए अनुशासन आवश्यक है। बिना अनुशासन के कुछ भी कर पाना असम्भव है। अनुशासन से व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है तथा समाज को शुभ दिशा मिलती है। वस्तुतः अनुशासित जीवन ही जीवन है। अनुशासित जीवन के अभाव में हमारी जिन्दगी दिशाहीन एवं निरर्थक हो जायेगी।
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